
जला दिया मेरा बचपन
मासूमियत और वह आंगन
गूंजती थी जहां मेरी किलकारियां
आज वही से बचा कर भाग रही हूं अपनी कलाइयां
यह शादी, यह जोड़ा, समाज की यह बेड़ियां,
मर्द जात की हम पर यह मेहरबानियां,
में बिखरी हूं, तन्हा हूं, आंसुओं के ना मेरा कोई मोल है,
अरे यह तो लड़की है रोना तो इसकी भूल है
कमा कर दो वक्त की रोटियां करते हैं मेरे जिस्म का सौदा
संस्कार के नाम पर कस दिया लगाम है
मेरे जज्बातों का ना कोई सम्मान है
जवान हूं, तलाकी हूं, तवायफ हूं,
अरे मैं भी तो इंसान हूं
हमसे है दुनिया हम ही से सारा जहान है।
अर्श से लेकर फर्श तक मचा रखा मैंने बवाल है
औरत हूं में, इज्जत भी में, शोहरत भी मैं ही हूं,
मैंने दिखाई तुम्हें दुनिया
यह मेरा तुम पर एहसान है
Comments
Post a Comment